विचारणीय
मैं हूँ
मेरा चित्र है;
थोड़ी प्रशंसाएँ हैं
परोक्ष, प्रत्यक्ष
भरपूर आलोचनाएँ हैं,
मेरा चित्र है;
थोड़ी प्रशंसाएँ हैं
परोक्ष, प्रत्यक्ष
भरपूर आलोचनाएँ हैं,
मैं नहीं हूँ
मेरा चित्र है;
सीमित आशंकाएँ
समुचित संभावनाएँ हैं,
मेरा चित्र है;
सीमित आशंकाएँ
समुचित संभावनाएँ हैं,
मन के भावों में
अंतर कौन पैदा करता है-
मनुष्य का होना या
मनुष्य का चित्र हो जाना...?
अंतर कौन पैदा करता है-
मनुष्य का होना या
मनुष्य का चित्र हो जाना...?
प्रश्न विचारणीय
तो है मित्रो!
तो है मित्रो!
संजय भारद्वाज
writersanjay@gmail.com
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(शुक्रवार, 11 मई 2018, रात्रि 11:52 बजे)
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