📚💥
*सीढ़ियाँ*
आती-जाती
रहती हैं पीढ़ियाँ
जादुई होती हैं
उम्र की सीढ़ियाँ,
जैसे ही अगली
नज़र आती है
पिछली तपाक से
विलुप्त हो जाती है,
आरोह की सतत
दृश्य संभावना में
अवरोह की अदृश्य
आशंका खो जाती है,
जब फूलने लगे साँस
नीचे अथाह अँधेरा हो
पैर ऊपर उठाने को
बचा न साहस मेरा हो,
चलने-फिरने से भी
देह दूर भागती रहे
पर भूख-प्यास तब भी
बिना लांघा लगाती डेरा हो,
हे आयु के दाता! उससे
पहले प्रयाण करा देना
अगले जन्मों के हिसाब में
बची हुई सीढ़ियाँ चढ़ा देना!
मैं जिया अपनी तरह
मरूँ भी अपनी तरह,
आश्रित कराने से पहले
मुझे विलुप्त करा देना!
रहती हैं पीढ़ियाँ
जादुई होती हैं
उम्र की सीढ़ियाँ,
जैसे ही अगली
नज़र आती है
पिछली तपाक से
विलुप्त हो जाती है,
आरोह की सतत
दृश्य संभावना में
अवरोह की अदृश्य
आशंका खो जाती है,
जब फूलने लगे साँस
नीचे अथाह अँधेरा हो
पैर ऊपर उठाने को
बचा न साहस मेरा हो,
चलने-फिरने से भी
देह दूर भागती रहे
पर भूख-प्यास तब भी
बिना लांघा लगाती डेरा हो,
हे आयु के दाता! उससे
पहले प्रयाण करा देना
अगले जन्मों के हिसाब में
बची हुई सीढ़ियाँ चढ़ा देना!
मैं जिया अपनी तरह
मरूँ भी अपनी तरह,
आश्रित कराने से पहले
मुझे विलुप्त करा देना!
संजय भारद्वाज
writersanjay@gmail.com
writersanjay@gmail.com
प्रातः 8:01 बजे, 21.4.19
आपका दिन शुभ हो।
✍️🙏🏻
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