रविवार, 24 मई 2020

अंतर्प्रवाह


*अंतर्प्रवाह*📚

हलाहल निरखता हूँ
अचर हो जाता हूँ,
अमृत देखता हूँ
प्रवाह बन जाता हूँ,
जगत में विचरती देह
देह की असीम अभीप्सा,
जीवन-मरण, भय-मोह से
मुक्त जिज्ञासु अनिच्छा,
दृश्य और अदृश्य का
विपरीतगामी अंतर्प्रवाह हूँ,
स्थूल और सूक्ष्म के बीच
सोचता हूँ मैं कहाँ हूँ..!

संजय भारद्वाज
writersanjay@gmail.com
9890122603

(रात्रि 3: 33,  23.3.2020)

# दो ग़ज़ की दूरी
    है बहुत ज़रूरी।
🙏🏻✍️

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