गुरुवार, 7 मई 2020

चुप्पियाँँ- 3



🌻📚
कुछ मित्रों का सुझाव था कि *चुप्पियाँ* शृंखला के अंतर्गत एक दिन एक ही कविता दूँ। उनके सुझाव को शिरोधार्य करते हुए आज से एक ही 
कविता साझा करूँगा।

*चुप्पियाँ- 3*

'मैं और
मेरी चुप्पी',
युग-युगांतर से
रच रहा हूँ
बस यही
एक महाकाव्य,
जाने क्या है कि
सर्ग समाप्त ही
नहीं होते...!

संजय भारद्वाज
writersanjay@gmail.com 

(1.9.18, रात 11:31 बजे)

#  घर में रहें, सुरक्षित रहें।

🙏🏻✍️

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