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कुछ मित्रों का सुझाव था कि *चुप्पियाँ* शृंखला के अंतर्गत एक दिन एक ही कविता दूँ। उनके सुझाव को शिरोधार्य करते हुए आज से एक ही
कविता साझा करूँगा।
*चुप्पियाँ- 3*
'मैं और
मेरी चुप्पी',
युग-युगांतर से
रच रहा हूँ
बस यही
एक महाकाव्य,
जाने क्या है कि
सर्ग समाप्त ही
नहीं होते...!
मेरी चुप्पी',
युग-युगांतर से
रच रहा हूँ
बस यही
एक महाकाव्य,
जाने क्या है कि
सर्ग समाप्त ही
नहीं होते...!
संजय भारद्वाज
writersanjay@gmail.com
writersanjay@gmail.com
(1.9.18, रात 11:31 बजे)
# घर में रहें, सुरक्षित रहें।
🙏🏻✍️
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