सोमवार, 22 जून 2020

संजय


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*संजय*

दिव्य दृष्टि की
विकरालता का भक्ष्य हूँ,
शब्दांकित करने
अपने समय को विवश हूँ,
भूत और भविष्य
मेरी पुतलियों में
पढ़ने आता है काल,
वर्तमान परिदृश्य हूँ,
वरद अवध्य हूँ,
कालातीत अभिशप्त हूँ!

*संजय भारद्वाज*

(18.5.2018, अपराह्न 3:50 बजे)

# आपका दिन सार्थक हो।
🙏🏻

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