बुधवार, 10 जून 2020

नेह


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*नेह*

मन विदीर्ण हो जाता है
जब कोई
कह-बोल कर
औपचारिक रूप से
बताता-जताता है,
रिश्तों को शाब्दिक
लिबास पहनाता है,
जानता हूँ,
नेह की छटाओं में
होती नहीं एकरसता है
पर मेरी माँ ने कभी नहीं कहा
‘तू मेरे प्राणों में बसता है।’

-संजय भारद्वाज
(संध्या 7:35 बजे, शुक्रवार, 25.5.18)

# दो गज़ की दूरी
   है बहुत ज़रूरी।
🙏🏻✍️

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