🌿🙏🏻
*चुप्पियाँ*-12
मेरे शब्द
चुराने आए थे वे,
चुप्पी की मेरी
अकूत संपदा देखकर
मुँह खुला का खुला
रह गया.....,
समर्पण में
बदल गया आक्रमण,
मेरी चुप्पी में
कुछ और पात्रों का
समावेश हो गया!
चुराने आए थे वे,
चुप्पी की मेरी
अकूत संपदा देखकर
मुँह खुला का खुला
रह गया.....,
समर्पण में
बदल गया आक्रमण,
मेरी चुप्पी में
कुछ और पात्रों का
समावेश हो गया!
*संजय भारद्वाज*
writersanjay@gmail.com
writersanjay@gmail.com
(प्रातः 8:07 बजे, 2.9.18)
(कविता-संग्रह *चुप्पियाँ* से)
# दो गज़ की दूरी
है बहुत ज़रूरी।
है बहुत ज़रूरी।
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