बुधवार, 10 जून 2020

फेरा


🌗 *फेरा*

अथाह अंधेरा
एकाएक प्रदीप्त उजाला
मानो हजारों
लट्टू चस गए हों,
नवजात का आना
रोना-मचलना
थपकियों से बहलना,
शनै:-शनै:
भाषा समझना,
तुतलाना
बातें मनवाना
हठी होते जाना,
उच्चारण में
आती प्रवीणता,
शब्द समझकर
उन्हें जीने की लीनता,
चरैवेति-चरैवेति...,
यात्रा का
चरम आना
आदमी का हठी
होते जाना,
येन-केन प्रकारेण
अपनी बातें मनवाना,
शब्दों पर पकड़
खोते जाना,
प्रवीण रहा जो कभी
अब उसका तुतलाना,
रोना-मचलना
किसी तरह
न बहलना,
वर्तमान भूलना
पर बचपन उगलना,
एकाएक वैसा ही
प्रदीप्त उजाला
मानो हजारों
लट्टू चस गए हों
फिर अथाह अंधेरा..,
जीवन को फेरा
यों ही नहीं
कहा गया मित्रो!

संजय भारद्वाज
writersanjay@gmail.com

प्रात: 10:10 बजे
शनिवार, 26.5.18

# सजग रहें, सतर्क रहें।
🌞✍️

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