सोमवार, 22 जून 2020

संजय


...✍️

*संजय*

दिव्य दृष्टि की
विकरालता का भक्ष्य हूँ,
शब्दांकित करने
अपने समय को विवश हूँ,
भूत और भविष्य
मेरी पुतलियों में
पढ़ने आता है काल,
वर्तमान परिदृश्य हूँ,
वरद अवध्य हूँ,
कालातीत अभिशप्त हूँ!

*संजय भारद्वाज*

(18.5.2018, अपराह्न 3:50 बजे)

# आपका दिन सार्थक हो।
🙏🏻

विश्वास


*विश्वास*

रोज रात
सो जाता हूँ
इस विश्वास से कि
सुबह उठ जाऊँगा,
दर्शन कहता है-
साँसें बाकी हैं
तोे उठ पाता हूँ,
मैं सोचता हूँ-
विश्वास बाकी है
सो उठ जाता हूँ..!

संजय भारद्वाज
writersanjay@gmail.com

(बुधवार 15 जून 2016, रात्रि 12:10 बजे)

# सजग रहें। स्वस्थ रहें।
🙏🏻✍️

सबकुछ


✍️...

*सबकुछ*

कुछ मैं,
कुछ मेरे शब्द,
सबकुछ की परिधि
कितनी छोटी होती है!

*संजय भारद्वाज*
writersanjay@gmail.com
प्रात 6:29 बजे, 7.7.2017

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।
🙏🏻

सत्य


*सत्य*

इसका सत्य
उसका सत्य,
मेरा सत्य
तेरा सत्य,
क्या सत्य सापेक्ष होता है?
अपनी सुविधा
अपनी परिभाषा,
अपनी समझ
अपना प्रमाण,
दृष्टि सापेक्ष होती है,
साधो! सत्य निरपेक्ष होता है!

*संजय भारद्वाज*
writersanjay@gmail.com

रात्रि 12:27 बजे, 16.6.19

आपका दिन सार्थक हो।
🙏🏻✍️

बुधवार, 17 जून 2020

सिंफनी


💦
*सिंफनी*

उठना चाहता है
लहर की तरह,
उठ पाता है
बुलबुले की तरह,
समय, प्रयत्न
और भाग्य की सिंफनी
सफलता तय करती हैं,
स्वप्न और सामर्थ्य
के बीच की दूरी
उफ़ कितनी खीझ
उत्पन्न करती है!

*संजय भारद्वाज*
writersanjay@gmail.com
( मंगलवार, 7 जून 2016, प्रातः 6:51)

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।
✍️🙏🏻

मंगलवार, 16 जून 2020

विकल्प



🌻🍁

*विकल्प*

यात्रा में संचित
होते जाते हैं शून्य,
कभी छोटे, कभी विशाल,
कभी स्मित, कभी विकराल..,
विकल्प लागू होते हैं
सिक्के के दो पहलू होते हैं-
सारे शून्य मिलकर
ब्लैकहोल हो जाएँ
और गड़प जाएँ अस्तित्व
या मथे जा सकें
सभी निर्वात एकसाथ
पाये गर्भाधान नव कल्पित,
स्मरण रहे-
शून्य मथने से ही
उमगा था ब्रह्मांड
और सिरजा था
ब्रह्मा का अस्तित्व,
आदि या इति
स्रष्टा या सृष्टि
अपना निर्णय, अपने हाथ
अपना अस्तित्व, अपने साथ,
समझ रहे हो न मनुज..!

संजय भारद्वाज
writersanjay@gmail.com

( प्रात: 8.44 बजे, 12 जून 2019)

हरेक के भीतर बसे ब्रह्मा को नमन। आपका दिन सार्थक हो।
✍🌻🙏

सोमवार, 15 जून 2020

साक्षात्कार


🕉️ *संजय उवाच* 🕉️

*साक्षात्कार*
शाम के घिरते धुँधलके में बालकनी से सड़क की दूसरी ओर का दृश्य निहार रहा हूँ। काफी ऊँचाई पर सुदूर आकाश में दो पंछी पंख फैलाये, धीमी गति से उड़ते दिख रहे हैं। एक धीरे-धीरे नीचे की ओर आ रहा है। नीचे आने की क्रिया में पेड़ के पीछे की ओर जाकर विलुप्त हो गया। संभवत: कोई घोंसला उसकी प्रतीक्षा में है। दूसरा दूर और दूर जा रहा है, निरंतर आकाश की ओर। थोड़े समय बाद आँखों को केवल आकाश दिख रहा है।
जीवन भी कुछ ऐसा ही है। घोंसला मिलना, जगत मिलना। जगत मिलना, जन्म पाना।आकाश में ओझल होना, प्रयाण पर निकलना। प्रयाण पर निकलना, काल के गाल में समाना।

प्रकृति को निहारो, हर क्षण जन्म है। प्रकृति को निहारो, हर क्षण मरण है। प्रकृति है सो पंचमहाभूत हैं। पंचमहाभूत हैं सो जन्म है। प्रकृति है सो पंचतत्वों में विलीन होना है, पंचतत्वों में विलीन होना है सो मरण है। प्रकृति है सो पंचेंद्रियों के माध्यम से जीवनरस का पान है। जीवनरस का पान है सो जीवन का वरदान है। जन्म का पथ है प्रकृति, जीवन का रथ है प्रकृति, मृत्यु का सत्य है प्रकृति।

प्रकृति जन्म, परण, मरण है। जन्म, परण, मरण, जीव की गति का अलग-अलग भेष हैं।जन्म, परण, मरण ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं।

ब्रह्मा, विष्णु, महेश,त्रिदेव हैं। प्रकृति त्रिदेव है। सहजता से त्रिदेव के साक्षात दर्शन कर सकते हो।

साधो! कब करोगे दर्शन?

*संजय भारद्वाज*
writersanjay@gmail.com

संध्या 7:28, 13.6.20

आपका दिन सार्थक हो।
✍️🙏🏻