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*शपथ*
जब भी
उबारता हूँ उन्हें,
कसकर पकड़ लेते हैं
अंग-अंग जकड़ लेते हैं,
मिलकर डुबोने लगते हैं मुझे,
सुनो...!
डूब भी गया मैं तो
मुझे यों श्रद्धांजलि देना,
मिलकर, डूबतों को
उबारने की शपथ लेना..!
संजय भारद्वाज
writersanjay@gmail.com
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