शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020


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बच्चों को उठाने के लिए माँ-बाप अलार्म लगाकर सोते हैं। जल्दी उठकर बच्चों को उठाते हैं। किसीको स्कूल जाना है, किसीको कॉलेज, किसीको नौकरी पर। किसी दिन दो-चार मिनट पहले उठा दिया तो बच्चे चिड़चिड़ाते हैं।  माँ-बाप मुस्कराते हैं, बचपना है, धीरे-धीरे समझेंगे।...धीरे-धीरे बच्चे ऊँचे उठते जाते हैं और खुद को 'सेल्फमेड' घोषित कर देते हैं।
सोचता हूँ कि माँ-बाप और परमात्मा में कितना साम्य है! जीवन में हर चुनौती से दो-दो हाथ करने के लिए जागृत और प्रवृत्त करता है ईश्वर। माँ-बाप की तरह हर बार जगाता, चाय पिलाता, नाश्ता कराता, टिफिन देता, चुनौती फ़तह कर लौटने की राह देखता है। हम फ़तह करते हैं चुनौतियाँ और खुद को 'सेल्फमेड' घोषित कर देते हैं।
कब समझेंगे हम? अनादिकाल से चला आ रहा बचपना आख़िर कब समाप्त होगा?

संजय भारद्धाज
writersanjay@gmail.com

*# निठल्ला चिंतन*

( प्रातः 6:52 बजे,28.8.19)

घर पर रहें, स्वस्थ रहें।

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