बुधवार, 29 अप्रैल 2020

गाथा



*गाथा*

वास्तविकता,
काल्पनिकता,
एक सौ अस्सी अंश
दर्शाती भूमिकाएँ,
तीन सौ साठ अंश पर
परिभ्रमण करती
जीवनचक्र की
असंख्य तूलिकाएँ,
आदि की भोर,
अंत की सांझ,
साझा होकर
अनंत हो रही हैं,
देखो मनुज,
दंतकथाएँ, अब
सत्यकथाओं में
परिवर्तित हो रही हैं..!

संजय भारद्वाज
writersanjay@gmail.com

रात्रि 11.49 बजे,
28.4.2020

# सुरक्षित रहना है, घर में रहना है।


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