बुधवार, 29 अप्रैल 2020

शपथ


📚🍁
*शपथ*
जब भी
उबारता हूँ उन्हें,
कसकर पकड़ लेते हैं
अंग-अंग  जकड़ लेते हैं,
मिलकर डुबोने लगते हैं मुझे,
सुनो...!
डूब भी गया मैं तो
मुझे यों श्रद्धांजलि देना,
मिलकर, डूबतों को
उबारने की शपथ लेना..!
संजय भारद्वाज
writersanjay@gmail.com
🙏🏻✍️

गाथा



*गाथा*

वास्तविकता,
काल्पनिकता,
एक सौ अस्सी अंश
दर्शाती भूमिकाएँ,
तीन सौ साठ अंश पर
परिभ्रमण करती
जीवनचक्र की
असंख्य तूलिकाएँ,
आदि की भोर,
अंत की सांझ,
साझा होकर
अनंत हो रही हैं,
देखो मनुज,
दंतकथाएँ, अब
सत्यकथाओं में
परिवर्तित हो रही हैं..!

संजय भारद्वाज
writersanjay@gmail.com

रात्रि 11.49 बजे,
28.4.2020

# सुरक्षित रहना है, घर में रहना है।


सोमवार, 27 अप्रैल 2020

संजय


📚🍁

*संजय*

सारी टंकार
सारे कोदंड
डिगा नहीं पा रहे,
जीवन के महाभारत का
दर्शन कर रहा हूँ,
घटनाओं का
वर्णन कर रहा हूँ,
योगेश्वर उवाच
श्रवण कर रहा हूँ,
'संजय' होने का
निर्वहन कर रहा हूँ!

संजय भारद्धाज
writersanjay@gmail.com

रात्रि 9:14 बजे, 3अक्टूबर 2015

# घर में रहें, स्वस्थ व सुरक्षित रहें।

✍️🙏🏻

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020


💥💥

बच्चों को उठाने के लिए माँ-बाप अलार्म लगाकर सोते हैं। जल्दी उठकर बच्चों को उठाते हैं। किसीको स्कूल जाना है, किसीको कॉलेज, किसीको नौकरी पर। किसी दिन दो-चार मिनट पहले उठा दिया तो बच्चे चिड़चिड़ाते हैं।  माँ-बाप मुस्कराते हैं, बचपना है, धीरे-धीरे समझेंगे।...धीरे-धीरे बच्चे ऊँचे उठते जाते हैं और खुद को 'सेल्फमेड' घोषित कर देते हैं।
सोचता हूँ कि माँ-बाप और परमात्मा में कितना साम्य है! जीवन में हर चुनौती से दो-दो हाथ करने के लिए जागृत और प्रवृत्त करता है ईश्वर। माँ-बाप की तरह हर बार जगाता, चाय पिलाता, नाश्ता कराता, टिफिन देता, चुनौती फ़तह कर लौटने की राह देखता है। हम फ़तह करते हैं चुनौतियाँ और खुद को 'सेल्फमेड' घोषित कर देते हैं।
कब समझेंगे हम? अनादिकाल से चला आ रहा बचपना आख़िर कब समाप्त होगा?

संजय भारद्धाज
writersanjay@gmail.com

*# निठल्ला चिंतन*

( प्रातः 6:52 बजे,28.8.19)

घर पर रहें, स्वस्थ रहें।

📚✍🙏🏻