प्रथम नमन अनुभूति को अभिव्यक्ति का सामर्थ्य देनेवाली माँ सरस्वती को. लगभग चार वर्ष पूर्व यह ब्लाग आरम्भ किया था. एकाध वाक्य लिखने की कोशिश कर छोड़ दिया था. पर विचार कभी छूटता थोड़े ही है. आज लौट आया हूँ ब्लाग पर. अंतरजाल पर आया हूँ; वैचारिक जालों से मुक्त होने के लिए या उनमें और उलझने के लिए, पता नहीं। अलबत्ता आया हूँ, यही सच है.…… जिस विद्यालय में मैं पढ़ता था, उसके प्रवेश द्वार के समीप दाएं हाथ पर सातवीं कक्षा हुआ करती थी. उसके दरवाजे पर सुविचार लिखा था- आरम्भ करो, तभी अंत होगा। ये आरम्भ अंत के लिए है या अनंत के लिए; नहीं जानता पर आरम्भ है, ये सच है।
मित्रो! महाभारत का संजय अर्जुन के सिवा दूसरा ऐसा व्यक्ति था जिसने योगेश्वर के विराट रूप के दर्शन किए थे। संजय को मिली इस दिव्य दृष्टि ने ही संजय को महाभारत युद्ध का वर्णन कर सकने का सामर्थ्य दिया। श्रीमद्भागवत गीता का आरम्भ ही संजय उवाच से हुआ है। इस ब्लाग का नामकरण संजय उवाच करने के पीछे इच्छा ये है कि योगेश्वर ने जिस तरह से एक ही शरीर में अनेक शरीर दिखाए, उसी तरह हर घटना, व्यक्ति या व्यक्तित्व के अनेक पहलू हो सकते हैं। लेखक और पत्रकार से अपेक्षित है कि उसके शब्द भी एकांगी न हों। वह निष्पक्ष भाव से चरित्र या घटना के साथ न्याय करे। लेखनी जब भी चले अमृत के शोध में चले, हलाहल तलाशने से बेहतर है अपनी कलम छोड़ देना। … ब्लाग के लेखक का नाम संजय होना एक संयोग भर है, भीतर के लेखक के लिए संभवतः सुखद संयोग। एक विस्तृत सन्दर्भ के नामकरण को ये अदना -सा कलमकार ईमानदारी से निभाने का प्रयास करेगा, ये वचन तो दे ही सकता हूँ।
एक पुराणी कविता से नए ब्लाग का आरम्भ करता हूँ। आप सबकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
हमारे समय की यही विसंगति है !
मित्रो! महाभारत का संजय अर्जुन के सिवा दूसरा ऐसा व्यक्ति था जिसने योगेश्वर के विराट रूप के दर्शन किए थे। संजय को मिली इस दिव्य दृष्टि ने ही संजय को महाभारत युद्ध का वर्णन कर सकने का सामर्थ्य दिया। श्रीमद्भागवत गीता का आरम्भ ही संजय उवाच से हुआ है। इस ब्लाग का नामकरण संजय उवाच करने के पीछे इच्छा ये है कि योगेश्वर ने जिस तरह से एक ही शरीर में अनेक शरीर दिखाए, उसी तरह हर घटना, व्यक्ति या व्यक्तित्व के अनेक पहलू हो सकते हैं। लेखक और पत्रकार से अपेक्षित है कि उसके शब्द भी एकांगी न हों। वह निष्पक्ष भाव से चरित्र या घटना के साथ न्याय करे। लेखनी जब भी चले अमृत के शोध में चले, हलाहल तलाशने से बेहतर है अपनी कलम छोड़ देना। … ब्लाग के लेखक का नाम संजय होना एक संयोग भर है, भीतर के लेखक के लिए संभवतः सुखद संयोग। एक विस्तृत सन्दर्भ के नामकरण को ये अदना -सा कलमकार ईमानदारी से निभाने का प्रयास करेगा, ये वचन तो दे ही सकता हूँ।
एक पुराणी कविता से नए ब्लाग का आरम्भ करता हूँ। आप सबकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
बोधि वृक्ष-
जो कभी हरे -भरे रहे हैं
अब ठूंठ से खड़े हैं
संभवतः धरती से जुड़े रहने का दंड मिला है
जंगली बेलें -
धरती के ऊपर पनपती
बोधि के वक्ष पर फुदकती इठला रही हैं
परजीवी हैं ,
बोधि की सूखी जड़ें खा रही हैं
बुद्धिमानी के सरकारी तमगे पा रही हैं
बोधि बंजर हो चुके ,जंगली बेलें सौभाग्यवती हैं
हमारे समय की यही विसंगति है !
''बोधि बंजर हो चुके ,जंगली बेलें सौभाग्यवती हैं''.......
जवाब देंहटाएंयह अभिव्यक्ति ही आज चाहिए.
स्वागत.
Rishabhji, is blog ko aap jaise manishi ki pahli pratikriya milna nishchay hi sukhad hai. Aapka hardik aabhar.
हटाएं(Blog par bahut naya hoon, comments likhte samay jane kyon devnagri font nahi dikha raha hai, par shanaih-shanaih abhyast ho jaaoonga.)
संजयजी आप लिखते जाईये , आजकल प्रिंट में पढने लायक कुछभी मिलता नही है !
जवाब देंहटाएंAlawaniji, aapka pratikriya dekhkar sukh hua. Eeshwar ne chaha aur aap sab mitro ka saath raha to blog par lekhan nirantar ho jaayega. Dhanyawad.
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